08 November 2024

Hai Khushi Ke Suroor Ka Sehra... A Sehra For Noor In Devnaagri Hindi Shair:- Saif Babar @ Mohd Saif Babar

है ख़ुशी के सुरूर का सेहरा 

नूर के सर पे नूर का सेहरा


ख़ूब शहनाज़ लाई हैं शहनाज़

नूर ख़ुशियों का है हसीन आगाज़

आज रुख़सार की महक से है 

महका महका ये नूर का सेहरा


नूर गुम आज रश्क-ए-हूर में हैं

और रुख़सार खोई नूर में हैं

फुप्पी नाहीद लाईं चुन के हैं गुल

बन गया उनसे नूर का सेहरा


फुप्फा तारिक़ बहार ख़ालू के

फुप्फा अशफ़ाक़ फुप्फी अफ़्शाँ के

सब के दिल से दुआऐं निकली हैं 

ख़ूब महके ये नूर का सेहरा 


है ख़ुशी अपनी ही रवानी में 

अब्बू मोहसिन की गुल फ़िशानी में

ताया सुल्तान और चचा लाली

लाए हैं ख़ूब नूर का सेहरा 


रेश्मा सीमा और गुड़िया चची

सब के हाथों में ख़ूब मेहंदी रची

मेहंदी में नाम हैं चचाओं के 

और दुआओं में नूर का सेहरा


हों समीना सबा सहर या इरम

शीबा सहबा शमामा ज़ेबा निदा

फ़ाएज़ा सायरा फ़रिहा अनअम

साएमा और हुमा सुमयरा हिना

साथ वरदा के सारी ही बहनें

देख कर ख़ुश हैं नूर का सेहरा


साद रेहान दोनों और सलमान

सैफ़ बहनोई भी हैं शाद बहुत

यार प्यारा शुएब झूम उठा

देख कर सर पे नूर का सेहरा


जिसको कल गोद में खिलाया था

भांजा आज वो बना दूल्हा

मामूँ कामिल शु'ऊर खिल उठ्ठे

देख कर खिलता नूर का सेहरा


दादा अब्दुल रशीद और दादी 

नाना अतहर हुसैन और नानी

ख़ुल्द में रब से कर रहे हैं दुआ 

महके सदियों ये नूर का सेहरा


आज जन्नत में कर रहीं हैं दुआ

ख़ाला निकहत भी और नुज़हत भी

यूँ ही खिलता रहे महकता रहे 

मेरे प्यारे से नूर का सेहरा


भाई रिज़वान की चहती है 

महजबीन आप की तो बेटी है

हो मुबारक कि आपकी रुख़सार

बन गई आज नूर का सेहरा


आज बाग़ ए इरम आई है

अब्बू सुल्तान शेख़ की ये दुआ

बेटी रुख़सार को मुबारक हो

नेक दामाद नूर का सेहरा


रेश्मा ख़ाला और ख़ालू शुएब

साद फ़ैसल भी गाऐंगे मिल कर

"सैफ़ बाबर" क़लम उठाओ लिखो

अपने भाई का, नूर का सेहरा 


है ख़ुशी के सुरूर का सेहरा 

नूर के सर पे नूर का सेहरा


शाइर 

सैफ़ बाबर

(Mohd Saif Babar) 

+91 9936008545 

07 November 2024

Qita - Shair :- Saif Babar (Mohd Saif Babar) سیف بابر( محمد سیف بابر )

मुँह किस से फेरना है, कहां आना जाना सीख
कब किस से कितना मिलना है, मिलना मिलाना सीख
होना है कामयाब तो दिल पर न बोझ रख 
नज़रों से ऐसे वैसों को अपनी गिराना सीख 
शाइर 
सैफ़ बाबर 
(Mohd Saif Babar)
+91 9936008545

05 November 2024

سِہرا نور کے لیے... شاعر سیف بابر(محمد سیف بابر)Sehra Shair Saif Babar @Mohd Saif Babar

سِہرا

نور ہمراہ رُخسا

ہے خُوشی کے سُرُور کا سِہرا

نور کے سر پہ نور کا سِہرا


خوب شہناز  لائیں ہیں شَہناز

نور خوشیوں کا ہے حسِین آغاز

آج رُخسار کی مہک سے ہے

مہکا مہکا یہ نور کا سِہرا


 نور گُم آج رشکِ حُور میں ہیں

اور رُخسار کھوئی نور میں ہیں

پھُپّھی ناہید لائی چُن کے ہیں گُل

بن گیا اُن سے نور کا سِہرا


پھُپّھا طارِق بہار خالُو کے

پھُپّھا اشفاق پھُپّی افشاں کے

سب کے دل سے دعائیں نکلی ہیں

خُوب مہکے یہ نور کا سِہرا


ہے خوشی اپنی ہی روانی میں

ابّو محسن کی گُل فِشانی میں

تایا سُلطان اور چچا لالی

لائے ہیں خُوب نور کا سِہرا


ریشما سیما اور گُڑیا چچی

سب کے ہاتھوں میں خُوب مِہندی رچی

مِہندی میں نام ہیں چچاؤں کے

اور دعاؤں میں نور کا سِہرا


ہوں سمینہ صبا سحر یا اِرم

شیبا صہبا شمامہ زیبا نِدا

فائزہ سائرہ فریحہ انعم

صائمہ اور ہُما سُمیرا حِنا

ساتھ وردا  کے ساری ہی بہنیں 

دیکھ کر خوش ہیں نور کا سِہرا


سعد ریحان دونوں اور سلمان 

سیف بہنوئی بھی ہیں شاد بہت

یار پیارا شُعیب جھوم اُٹھا

دیکھ کر سر پہ نور کا سِہرا


جس کو کل گود میں کھِلایا تھا

بھانجا آج وہ بنا دُلہا

ماموں کامِل شعور کھِل اُٹّھے

دیکھ کر کھِلتا نور کا سِہرا


دادا عبدالرشید اور دادی

نانا اطہر حُسین اور نانی

خُـلد میں رب سے کر رہے ہیں دُعا

مہکے صدیوں یہ نور کا سِہرا


آج جنّت میں کر رہیں ہیں دُعا 

خالہ نکہت بھی اور نُزہت بھی

یوں ہی کِھلتا رہے مہکتا رہے

میرے پیارے سے نور کا سِہرا


بھائی رِضوان کی چہیتی ہے

مہہ جبین آپ کی تو بیٹی ہے

ہو مُبارک کہ آپ کی رُخسار 

بن گئی آج نور کا سِہرا 


آج باغِ ارم سے آئی ہے

ابّو سلطان شیخ کی یہ دُعا

بیٹی رُخسار کو مُبارک ہو

نیک داماد نور کا سِہرا 


رِیشما خالہ اور خالو شُعیب

سعد فیصل بھی گائیں گے مِل کر

"سیف بابر" قلم اٹھاؤ لِکھو

اپنے بھائی کا نور کا سِہرا


ہے خُوشی کے سُرُور کا سِہرا

نور کے سر پہ نور کا سِہرا

شاعر 

سیف بابر

+91 9936008545

©️

Saif Babar

Mohd Saif 

(Mohd Saif Babar)

+91 9936008545 


25 April 2024

ज़िन्दगी राह पर नहीं आती... सैफ़ बाबर ( मोहम्मद सैफ़ बाबर) زندگی راہ پر نہیں آتی...سیف بابر( محمد سیف بابر )

ग़ज़ल 

ज़िन्दगी राह पर नहीं आती
क्या ज़बाँ मो'तबर नहीं आती 

आप फिर आप हो नहीं सकते 
साफ़-गोइ अगर नहीं आती 

क्या कहें तुझको ऐ ग़म-ए-दौराँ 
इक ख़ुशी भी तो घर नहीं आती 

मेरे पैवंद देखने वाले 
बे-ज़री क्या नज़र नहीं आती

एक सहरा है और मजनूं है 
कोई लैला नज़र नहीं आती 

इश्क़ के ज़ीनों से तू इस दिल की 
छत पे क्यों कर उतर नहीं आती 

"सैफ़" उम्मीदें उनसे रखते हो
रहबरी जिनको कर नहीं आती 
शाइर 
सैफ़ बाबर 
(मोहम्मद सैफ़ बाबर)
+91 9936008545 

غزل

زندگی راہ پر نہیں آتی
کیا زباں معتبر نہیں آتی

آپ پھر آپ ہو نہیں سکتے 
ساف گوئی اگر نہیں آتی

کیا کہیں تُجھ کو اے غمِ دوراں
اِک خوشی بھی تو گھر نہیں آتی

میرے پیوند دیکھنے والے
بے زری کیا نظر نہیں آتی

ایک سہرا ہے اور مجنوں ہے
کوئی لیلیٰ نظر نہیں آتی

عشق کے زینوں سے تو اِس دل کی
جھت پہ کیوں کر اُتر نہیں آتی 

"سیف" اُمّیدیں اُن سے رکھتے ہو
 رہبری جِن کو کر نہیں آتی
شاعر
سیف بابر
(محمد سیف بابر)
+91 9936008545

Hazir Hai Facebook Ke Bad Aapke Shair Dost Saif Babar Mohd Saif Babar Ki Ye Taza Ghazal, Gahlib Ki Zameen Par