ज़ुरूरतें तो नही हैं जताना पड़ता है
बड़े हिसाब से मिलना मिलाना पड़ता है
अजीब दौर है कर लो जो अब किसी को सलाम
सलाम क्यों किया ये भी बताना पड़ता है
वो जैसा भी है मगर यार तो रहा है मिरा
उसे तो आज भी अच्छा बताना पड़ता है
मुक़ाबले में हमारे जो आए हो तो सुनों
कि हम सा होने में ख़ुद को मिटाना पड़ता है
यहाँ तो काट लें सर ही अगर झुकाऐं ज़रा
ये बस्ती वो है जहांँ सर उठाना पड़ता है
हमें भी पिंजरे में सय्याद क़ैद कर लेगा
हमें उड़ान पे ऊँची तो जाना पड़ता है
गुज़ारना है शराफ़त से ज़िन्दगी हमको
हमें कमीनों से दामन बचाना पड़ता है
जवाब ख़ुशबु से देकर घिनौने लोगों को
गुलाब है मिरी उर्दू बताना पड़ता है
मैं तिरे हुस्न का दीवाना हूँ ज़माने से
ये बार बार तुझे क्यों बताना पड़ता है
जहाँ में जीते हैं जो झूटी ज़िन्दगी उनको
बढ़ा-चढ़ा के तो ख़ुद को दिखाना पड़ता है
शाइर
सैफ़ बाबर
+91 9936008545
Mushairon Mein Aap Sabne Apne Shair Saif Babar (Mohd Saif Babar) Ki Is Ghazal Ko Bahot Pasand Kiya Ab Hazir Aap Sabke Liye Is Ghazal Ke Kuch Aur Sher Phir Kabhi Post Karoonga Duaon Ki Darkhwast
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